गुरुवार, 8 नवंबर 2012

yaun utpidan ke khilaf..

महिलाओं के बारे में भले ही  आज कल कहा जाता है कि  वो पुरुषों से कंधे से कन्धा मिला कर चल रही है लेकिन क्या इस बात को सच माना जा सकता है ? महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अत्याचारों को देख कर तो इस बात पर यकीन करना मुश्किल है .हमारे देश में  महिलाएँ  हर क्षेत्र में कार्य कर रही हैं  .सेना ,प्रशासकीय सेवा , राजनीति, मीडिया , निजी उद्योग महिलाओं ने हर जगह अपनी  उपस्थिति दर्ज  करवाई है लेकिन  इन  सब के बावजूद  भी उनकी स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं आया है  .दिल्ली ,मुंबई ,कोलकत्ता जैसे बड़े शहरों में  महिलाओं को अभी तक पुरुषों से बराबरी का हक नहीं मिला  पाया तो गाँव में उनकी  स्थिति  का अंदाज़ा लगाना कोई राकेट साइंस को समझने जैसा नहीं है 
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जिस देश में  नारी को देवी के रूप में पूजा जाता है, उस देश में महिलाओं के  खिलाफ यौन शोषण की घटनाएं आज कल एक आम बात होती जा रही है .दंतेवाड़ा  के घने जंगलों में रह रही किसी आदिवासी महिला  का यौन शोषण हो या मुंबई जैसे शहर में किसी बड़े पद पर कार्य कर रही किसी महिला का, हमारा समाज इन घटनाओं के लेकर संवेदनहीन होता जा रहा है .
 
नवदुर्गा में नौ दिन व्रत रखना और महिलाओं को अपने पाँव की जूती समझना कैसी भक्ति है ? आए  दिन अख़बारों और न्यूज़ चैनलों में यौन शोषण की घटनाएं पड़ी और देखी  जा सकती हैं .लेकिन हम बस उसे एक बार पढ़ कर या देख कर भूल जाते हैं ,तब तक जब तक कोई हमारा परीचित  उसका शिकार नहीं हो जाता या हमारे अगल बगल ऐसा कुछ नहीं घट जाता .इन सब का कारण है ऐसी घटनाओं को रोकने के प्रति हमारी इक्छाशक्ति .
 
मुंबई में साल 2011  में जब रुबन  और कीनन नाम के दो युवक अपनी कुछ  महिला दोस्तों की गुंडों से रक्षा कर रहे थे तो लोग तमाशबीन बने देख रहे थे .किसी की  हिम्मत नहीं हुई कि  जा कर उन दो बहादुर युवकों की मदद करें। लोगों की इस कायरता की वजह से उन  दो युवकों की मौत हो गई  .दिल्ली में लड़कियों से छेड़छाड़ की घटनाएं रोज़ होती रहती हैं .दिल्ली हमारे देश की राजधानी है लेकिन हमारे देश में महिलाऐं अगर कहीं सबसे ज्यादा असुरक्षित है तो वह  दिल्ली में ही हैं  .हर रोज़ देश के किसी कोने से किसी महिला के साथ छेड़-छाड़ या बलात्कार  की खबर आती है .ग्रामीण क्षेत्रो में महिलाओं के खिलाफ अत्याचार के बहुत से मामलों  का तो खुलासा ही नहीं होता  है .
 
कार्यस्थलों पर भी महिलाओं के साथ यौन शोषण की घटनाएं आम होती जा रही है . सेना की  महिला अफसरों   से लेकर  न्यूज़ चैनलों की महिला पत्रकारों  तक सभी को इल्म है कि  पुरुष प्रधान इस समाज में  कार्यस्थलों पर  उनका यौन शोषण हो सकता है  .कई तो इस यौन शोषण का शिकार भी हुई होंगी ,लेकिन ऐसे बहुत कम  महिलाएँ  होती  हैं जो हिम्मत करती  हैं इस बुराई के खिलाफ लड़ने की क्योंकि उन्हें पता होता कि उनकी राह आसन नहीं होगी .उन्हें डर  होता है कि समाज में उनकी इज्ज़त का क्या होगा,कहीं उन्हें नौकरी से तो नहीं निकाल दिया जाएगा . विडम्बना यह है  कि वह शोषित हुईं  हैं न कि  उन्होंने किसी  का शोषण किया है इसके अलबत्ता यह घिनोना काम करने वाला व्यक्ति अगर बड़े ओहदे पर हो तो  वह अपने रसूख से सारे मामले को दबा देता है .हालाँकि राजस्थान की  भंवरी देवी के इस अत्याचार के खिलाफ लड़ने के बाद उच्चतम न्यायलय ने  कार्यस्थलों पर यौन शोषण की घटनाओं को रोकने के लिए विशाखा दिशानिर्देश जारी किए हैं .लेकिन फिर भी इस उत्पीडन को रोका नहीं जा पा रहा है .
 
महिलाओं के यौन उत्पीड़न के   खिलाफ कानून को इतना सशक्त  बनाना  चाहिए कि ऐसा घृणित कार्य करने से पहले सजा के अहसास से ही अपराधी की  रूह काँप उठे .  हमारे  कायर समाज को भी इस ज़हर को खत्म करने के लिए आगे आना होगा .हमारे डबल स्टैण्डर्ड समाज को चौराहे पर खड़े होकर  या अपने कार्यस्थल पर किसी महिला के  साथ हो रही छेड़ -खानी या बेईज्ज़ती  का नज़ारा देखना बंद करना चाहिए ,चाहे महिला हो या पुरुष ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सब को मिल कर आगे आना होगा ,जिससे वापस किसी को भंवरी देवी या अरुणा शानबाग की तरह प्रताड़ित होना पड़े .